न्हं मंदर की छै अर न्हं मस्जिद की भाई,
छै सारी या बोटां के लेखै की लड़ाई।
घणां चोखा छौ थां घणां चोखा भाई,
बड़ी सब सूं या ई छै थां में बुराई।
बुरो-आछो आं दिनां थां निपटारो करल्यो,
न्हं लागै छै चोखी या नत की लड़ाई।
कोई बैर राखै तो मरजी सूं राखै,
कोई सूं न्हं म्हारी तो कोई लड़ाई।
घणी दाय आई ग़ज़ल थारी ‘कमसिन’,
बधाई, बधाई, बधाई, बधाई।