माथा पर ले उमर रो भारो

होग्यो बूढो बगत बिचारो

गेलो हाल घणो है लंबो

यूं थे कांईं हिम्मत हारो

पिंजरे सूं पंछी उड जासी

गारा में मिल जासी गारो

सगळा ठाठ धर्‌या रह जासी

कांईं थारो कांईं म्हारो

छिन में राजा छिन में चाकर

करमां रो खेल है सारो

जाणो पड़सी किरण थनैं

जद आवैला थारो वारो

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत अगस्त-सितंबर ,
  • सिरजक : कविता किरण ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृत अकादमी, बीकानेर
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