मन री जोत जगावै तो कीं बात बणै

अंधार मिटावै तो कीं बात बणै

म्हांरी तो सगळी बातां बण-बण नै बिगड़ै

थूं कीं बात बणावै तो कीं बात बणै

थनै बसायो म्है म्हांरा नैणां में अब थूं

मन में म्हनै बसावै तो कीं बात बणै

गौरी रो संदेस लायने अै बादळिया

मन री तिरस बुझावै तो कीं बात बणै

नगरा नैण मिलाणै सूं की मतलब कोनी

मन सूं मन मिल जावै तो कीं बात बणै

ठीक बात के मिनख पूगग्यो चन्द्रलोक पण

मन री भांव मिटावै तो कीं बात बणै

न्हाय-धोय नै तन नै ऊजळ राखणिया

मन रो मैल मिटावै तो कीं बात बणै

म्बैं आज अनलहक बोलूं ईसा ज्यूं

सूली म्हनै चढ़ावै तो कीं बात बणै।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली गजल विशेषांक ,
  • सिरजक : श्यामसुन्दर भारती ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ
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