नगरी महाराज राम री, बातां करौ इण में झूठी

कुण राखै अब इणरौ बेरौ, बीं री अस्मत कुण कुण लूटी।

बड़ भागां सूं मोवन मेवा, पूस्यौ चाटै पातळ जूंठी

कांई करै गौरड़ी संकर, जद बीं री किस्मत फूटी।

थे म्है रोळौ रप्पौ करियौ, माथै बरसी लाठ्यां गोळ्यां

मिनख बड़ां री बात निराळी, माचै संसद मारा कूटी।

तूं नीं जांणै बात थूकळ्या, अे बातां नैं राज काज री

किण विध नेता दिल्ली पूगै, धापूड़ी री ढाणी छूटी।

नितकी न्याव अन्याव बखावै करै, चौधरी जी की कटती

कयौ सुण्यौ कान धरै नीं, इण साळै किणरी घूंटी?

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : सवाईसिंह शेखावत ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
जुड़्योड़ा विसै