कुण सुणै है अब बातां स्याणी।

रुळती फिरैं हैं बात पुराणी।

डूबत खातै राज पाट है,

आँधो राजा अर काणी राणी।

छैला छैली सगळा घर में,

चूल्है आग पळींडै पाणी।

सांच कवै बिनैं डर आंच रो,

करता फिरैं गाणा माणी।

सिर लकोवण जग्यां ढूंढल्यो,

किताक दिन रो दाणो पाणी।

थ्यावस राख्यां सुधर ज्यासी,

आं बातां में नीं आणी जाणी।

जे रवैंला अठै आगीवाण,

इयां ही चालैली कुता खाणी।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : कुलदीप पारीक 'दीप' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी