कुण सुणै है अब बातां स्याणी।
रुळती फिरैं हैं बात पुराणी।
डूबत खातै ओ राज पाट है,
आँधो राजा अर काणी राणी।
छैला र छैली सगळा घर में,
न चूल्है आग पळींडै पाणी।
सांच कवै बिनैं डर आंच रो,
करता फिरैं स गाणा माणी।
सिर लकोवण जग्यां ढूंढल्यो,
किताक दिन रो दाणो पाणी।
थ्यावस राख्यां सुधर ज्यासी,
आं बातां में नीं आणी जाणी।
जे रवैंला अठै अ आगीवाण,
इयां ही चालैली कुता खाणी।