किस्मत नै अजमाय देख लूं

फेरूं सौगन खाय देख लूं।

म्हैं लाय पराई माथै

रोटी अपणी जाय सैक लूं।

मनचावी अर मन रै माफक

खेंच हथेळी माथै रेख लूं।

सूता भाग जगावै उण दर

गोडा अपणा जाय टेक लूं।

पढ़ी पोथियां भांत—भांत री

पढ़करां रा आज लेख लूं।

सोचूं पीड़ा ने पुचकारूं

अर कर कोई काज नेक लूं।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत मार्च-अप्रैल 2007 ,
  • सिरजक : कविता 'किरण' ,
  • संपादक : लक्ष्मीकान्त व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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