करवा लागा काका, वातां विकास री।

हुणज्यो बाबा म्हाका, वातां विकास री।

थां तांई नी पूगी, तो म्हां कई करां?

कर —कर कोई थाका, वातां विकास री।

म्होटा—म्होटा मक्या, अपणी मरोड़ में

व्हे ‘के वांका—वांका, वातां विकास री।

ढींकाजी पूंछाजी, लारे अन्या मन्या—

फांके फाड़’र बाका, वातां विकास री।

तूं—तूं करता माछर, माकण वताइ र् ‌या—

हमझे पण माखा, वातां विकास री।

स्रोत
  • पोथी : फूंक दे, फूंक ,
  • सिरजक : पुष्कर ‘गुप्तेश्वर’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण