कागलां री कांव मांही आज तक जिया

हींजड़ां रै गांव मांही आज तक जिया

माळिया री बात छोड़ झूंपड़ी कठै—

आकड़ा री छांव मांही आज तक जिया

डोळियां पै गाळियां ही गाळियां मंडी

सूगला सा नांव मांही आज तक जिया

रोग ठावौ लागज्या तौ चाव सूं मरां

खुरचती सी पांव मांही आज तक जिया

जीत तौ सै पीढ़ियां रै नांव मांड़ दी

हारता सा डांव मांही आज तक जिया।

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : भागीरथ सिंह भाग्य ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन