भूख री हाटां बिकागी जिन्दगी।

मौत रै हाथां झलागी जिन्दगी॥

बजट घाटै रो बण्यो है सांस रो,

अर्‌थियां खातै मंडागी जिन्दगी॥

साथ ही गणगगौर ज्यूं सिणगार री,

बोरटी कांटां सजागी जिन्दगी॥

धरती धोरां में कठै दिन-रूंखड़ा,

मरघटी रातां उगागी जिन्दगी॥

सुख रा बादळिया बरसै आंगणै,

खंख री लूवां झड़ागी जिन्दगी॥

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत जून 1995 ,
  • सिरजक : पुरूषोत्तम छंगाणी ,
  • संपादक : शौभाग्यसिंह शेखावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी री मासिक
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