दिवलो बळतो रयो रात भर

मन कळझळतो रयो रात भर

पलकां रा संचां में पल-पल

मोती ढळतो रयो रात भर

सगळां रा तकियां रै हेटै

दुख टळवळतो रयो रात भर

बळती मेणबत्ती रै साथै

म्हैं गळतो रयो रात भर

वै चुप बैठा हा पण वां नै

म्हैं सांभळतो रयो रात भर

जाणै कुण हो जो सपना में

रूप बदळतो रयो रात भर

नीं पूरै अैड़ी उमीद में

खुद नै छळतो रयो रात भर

सोनल सुबै उगावण खातर

म्हैं आफळतो रयो रात भर।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली गजल विशेषांक ,
  • सिरजक : श्यामसुन्दर भारती ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ
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