चीड़ी न्हारैयी धूड़ स्यात बरसात हुसी

कीड़ी बगै कतार स्यात बरसात हुसी।

अमूझ रैयो है आयो सुरजी मांदो,

गोट उपाड़ै रात स्यात बरसात हुसी।

आंख्यां री पितळावण सूखी जीभड़ली,

चकवो कैयसी बात स्यात बरसात हुसी।

कुरस्यां रा भच्चीड़ कान री खिड़क्यां खोलै,

नेताजी री घात स्यात बरसात हुसी।

गुड़ की भेल्यां तोल रैयो आड़ू ब्यौपारी,

हुयसी बन्दर-बांट स्यात बरसात हुसी।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : सत्यदीप 'अपनत्व' ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थली राष्ट्र हिन्दी प्रचार समिति
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