तुलसी आंगणद्वार डीकरी,
पूजूं बारंबार डीकरी।
कुमकुम पगली मम आंगणियै,
लिछमी रो अवतार डीकरी।
हेत बादळी वरै बाप पर,
अणहद अनराधार डीकरी।
जीवण दीपक राग थळी रो,
जिण पर मेघ मल्हार डीकरी।
भाव प्रणव लयमय कविता जिम,
सरल,सहज सुकुमार डीकरी।
कळी कोमळी पळै कोख तो,
क्यूं लागै है भार डीकरी।
सुगनचिड़ी ज्यूं बा उड जासी,
मती कोख में मार डीकरी।
बाळ करै ने बळै बाप हित,
पति घरां घनसार डीकरी।
नाना, नानी, ब्हैन,जमाई,
रिश्तां रो आधार डीकरी।
भुआ! बणनै लाड लडावै,
वहै भतीजां लार डीकरी।
मासी बण मोदक खवरावै,
करै घणी मनुहार डीकरी।
घरै बाप रै धी बण आवै,
बणै पति घर दार डीकरी।
काळी, लिछमी,सुरसत,रूपी,
दुरगा रो अवतार डीकरी।
आंगण पळ पळ रहै चांदणौ,
पुनमियौ अंधार डीकरी।
रमै आंगणै नवलख चौसठ,
जिणरै घर परिवार डीकरी।
नरपत रै घर बणै ज्हानवी
आई हरख अपार डीकरी।