बगत रै सागै चालणो पड़सी

खुद नैं भाया बदळणो पड़सी

उजियारा री आस थनै है

दीयो बणनै जळणो पड़सी

वांरै जैड़ा दिखणा चावो

उण सांचै में ढळणो पड़सी

सीप रा जे मोती पाणा

समदर मांय उतरणो पड़सी

रोया नीं रुजगार मिलैला

हक री खातर लड़णो पड़सी

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : अब्दुल समद ‘राही’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ