बाण्णे बाण्णे उजरा उजरा, कपट हिया में राकें हैं

मारू मारा बाप नूं, कई कई बीजा हामू ताकें हैं।

बीक तारं मौड़े लागें, हरते बोलै आज मनक

रखवारा भी मारा ग्या, कौण केनी हंबार राकैं हैं।

बइमानी और गुण्डागर्दी, एना खून में आज वसी,

देश ना टुकड़ा करवा हारू, उबा उबा डाकैं हैं।

नफरत और कपट नी आंधी, देश नै ढांपी लीदू है

देश नै बाण्णे जाई मनकं हाँसू झूटू फांके हैं।

आपणी सीज नै बोदी कई नै बीजा नूं गुण गान करें

घर नूं कूकड़ू दार बराबर, पारकू हाण्णू साकैं हैं।

आपडे-स्वार्थ मौज नै खातर रोज लड़ाये आज मनक

लागती लाय में सेंटी बई नै सार नो पूरो नाके हैं।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री ,
  • सिरजक : उपेन्द्र अणु ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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