शे’र पूरो पड़गो मोंदो,

कुण देवे मिनख नें खोंदो।

किणरो करां आज भरोसो

भींता उं न्यारो दीखे चोंदो।

शहरा मांही घणां बळै घर,

गांवां रै मांय टापरो बोंदो।

नीं है जगह पग देवण री,

मिनख देवे वगत रै सोंदो।

हाय-बोय उं जीव अमुजे

अन्तस नै इतरो मत रोंदो।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत मई 1995 ,
  • सिरजक : प्रेमदान चारण ,
  • संपादक : गोरधन सिंह शेखावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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