आदमी री बात रो जद व्है ग्यो है तोल कमती

व्है ग्यो है आदमी री जात रो भी मोल कमती

जावूं किण ठौड़ अबै लेय’नै थांनै साथीड़ां म्हैं

हर ठौड़ दिखै है म्हनै आबरू रा ढोळ कमती

कैवां कीं अर करां कीं आदत आपां री है

कान सुणै है अबै तो पूरा हुवता कौल कमती

वोट खातर कितरा आया अर कितरा ग्या परा है

पण भायड़ा कठै व्ही है हाल तांई पोल कमती

सांची कैवां तो घर रा भी व्है जावै है वैरी

घर सूं बारै भी सांच रो बगस खोल कमती

खार रा समंदर भरियोड़ा है मिनखां रै घट मांय

जीभड़ली भी बोलै भायड़ा ‘मीठा’ बोल कमती

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत जून 1995 ,
  • सिरजक : मीठालाल खत्री ,
  • संपादक : शौभाग्यसिंह शेखावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी री मासिक
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