अबै जीणो कम भी व्है, कांई फरक पड़ै?

भावै कित्ता गम भी व्है, कांई फरक पड़ै?

ढंगसर जीणै रो जमानो खतम हुयो है

मिनखां रा जुलम भी व्है, कांई फरक पड़ै?

हर बगत बारूदां रा धमाका सुणीजै

हेत री जगा बम व्है, कांई फरक पड़ै?

अपणायत सगळी रूसगी है, आपां सूं

इण रो अबै भरम भी व्है, कांई फरक पड़ै?

सुवागत है मदन फेर नवै बदळावां नैं

अै पग परथम भी व्है, कांई फरक पड़ै?

स्रोत
  • पोथी : कथेसर पत्रिका ,
  • सिरजक : मदन केवलिया ,
  • संपादक : रामस्वरूप किसान
जुड़्योड़ा विसै