आपो आप संभाळ भायला

मत ना चिन्त्या पाळ भायला

कड़ी परिच्छा लेवण खातर

जीवण रा जंजाळ भायला

कटसी गेलो सोरो-सोरो

चाल जठीनै ढ़ाळ भायला

दोगा चिन्ती रा चौरावा

जै आवै तो टाळ भायला

पतझड़ री रुत बीत्याँ पाछै

हरखै ली हर डाळ भायला

है सै सुपना साँचा मोती

आँकी राख रुखाळ भायला

कोसिस और भरोसै रै बळ

जुगताँ नूंई निकाळ भायला

संकट री कोड्याळी राताँ

रै सी कितरी ताळ भायला

मत भरमी, भरमासी मन नै

भरमाँ रा सौ जाळ भायला

चिंतन री पुड़ताँ खोल्याँ जा

चित गैरो खंगाळ भायला

लड़ कर जीतै बीं की देवै

जग लोग मिसाळ भायला

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : जयकुमार ‘रुसवा’ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी