आंख्यां मीच उजाळो ढूंढै,

मारग छोड भटकग्या लोग।

इस्या बिस्या तो आगे बधग्या,

आछा घणा पिछड़ग्या लोग।

घर रा नाता रिश्ता भूल्या,

नैड़ा हुया पराया लोग।

सेवा भूली त्याग भूलग्या,

धन में सैंग अटकग्या लोग

चोर-उचक्का अपराधी सै,

राजनीति में बड़ग्या लोग।

भागम भाग मचा दूजां ने,

टंगड़ी मार पटकग्या लोग।

माड़ा-मुड़दा हा नेता बण,

देखो आज अकड़ग्या लोग।

सत्ता रो सुख मीठो लाग्यो,

मूंढ़ो फेर गटकग्या लोग।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली गजल विशेषांक ,
  • सिरजक : गौरीशंकर आचार्य ‘अरूण’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ
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