अैड़ी कोई राग उगेर

ले आवै सगळां नै घेर

इतरा रंग बिखरिया देख

साचैलो चितराम उकेर

मन बिणजारो हाटां छोड़

खुद मन मेळू लासी हेर

पंखी, पुस्प, हंसी, मीठास

आं सगळां नै मती अवेर

कोई कवच काम नी आय

होणी रा पग चारूं मेर

इण अंधारी रातां बीच

अेक पलक रो लाव सवेर

हिवड़ै रै कोरै कागदियै

प्रीत लिखण में मतकर देर।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली गजल विशेषांक ,
  • सिरजक : दलपत परिहार ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ
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