अंबर तौ खींवै ढोला बीजळी

रिमझिम बरसाळौ लूम्यौ जाय

पिव-पातळिया, म्हैलां उडीकै गोरी अेकली।

आथूणो खेत बायौ, जां दिन हो हेत सवायौ

मगरां पर सूरज चिलकै, घूंघट में चांद लजायौ

म्हारी छांयां यूं लागै, थे जांणे चालौ सागै

अंबर तौ खींवै ढोला बीजळी

रूड़ौ-रूपाळौ सो सिंणगार

पिव-पातळिया, गैलां उडीकै गोरी अेकली।

खेतां में जोबन जागै, भादूड़ौ बैरी लागै

आकळ-बाकळ सी डोलूं, बतळाई किण सूं बोलूं

कमतर जी बिलमावै, दिन दूणौ काम करावै

अंबर तौ खींवै ढोला बीजळी

डरपै परदेसी-केरी नार

पिव-पातळिया, हेलां उडीकै गोरी अेकली।

आथूणी सांझ घुळीजै, मारग में मरवण हीजै

म्हारी छांयां बडभागी, थारै उणियारै लागी

पण में जद रात जगाऊं, थांनै कींकर बिसराऊं

अंबर तौ खींवै ढोला बीजळी

म्हारी सेजां रा सिंणगार

पिव-पातळिया, खेलां उडीकै गोरी अेकली।

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : गजानंद वर्मा ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा सहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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