म्हारा गांव का गरियाळा
बिखरी मोत्यां की सी माळा
वै भाइत्यां का रूंआळा
धूळा कांकरा का चाळा
चोमासो गारा की खोळ
ऊंदाळो धूळा की रमझोळ
तू रीजै थारी मौज में
म्हं सी बैनड़ की खोज में
रुण-झुण काना में झणकार
हिवड़ा में आळा जंजाळा म्हारा॥
बगलां झूपड़ां की झालर
दूधाँ नीमड़यां का फूंदा
बोछ्यां की झणकार्यां उड़ती
चालै रूपां का सा लूंदा
गौर्यां का माथा पै बेवड़ा
हाथां में लाम्बा जेवड़ा
जद सोमार पूजबा जाती
थारै मुगजी सी खड़ जाती
आभा सी दमकती बीजल्यां
होळी सी उठती झाळा म्हारा॥
जद छम-छम घर बारै आई
थारी धूळ में म्हूं लपटी
बाबल ने आछ्या फैराया
पण, थारा गारा में रपटी
अम्बर पटकौ धरती झेली
थारी छाती ऊपर खेली
मायड़ पैदा करबा हाळी
पण जीं पाछै थनै पाळी
खेली भाइल्यां की लेरां
थारी होर गळा की माळा म्हारा॥
या लूण्या सी थारी धूळ
म्हारा डीलड़ा में रमगी
ई सूं ही खून बण्यो म्हारो
अब या रगां-रगां में गमगी
घणी खिलाई, जद म्हूं रोई
पण अब छोड़ पराई होई
जे म्हूं उघड़या डीलां आती
थारी धूळ ओढ्यां जाती
चाली ले करजो माथा पै
मन में यादां का पिंडाळा म्हारा॥
म्हारै फैली कतनी पाळी
करी पराई न पाछी न्हाळी
जब म्हूं बैरण बणगी बोझ
ठाली ढोर ज्यूं ही टाळी
फेरूं भी छम-छम बाजैगी
पण बै भी यूं ही लाजैगी
तू तो दोखै छै निरमोही
हाथां पाळी हाथां खोई
करदै लार परायां की
मूंडा पै जड़दै ताळा म्हारा॥
म्हारा बीरा नै समझाजै
ओल्यूं धूळ की आवैगी
जाती बा’ळ सूं खैदीजै
भर-भर चिमट्यां ले जावेगी
फैली छोटा उघड़या पांऊँ
मैंदी भर्या उघाड़याँ जाऊँ
राता सा पावां की छाया
चलग्या जे पाछा न आया
उगती कूंपळ भी जाणैगी
कुणका जाता सा पगवाळा म्हारा॥
थारी धूळ जीव को रूप
तू सबनै देतोई रीजै
बाळक हीरां की सी कंठी
जुग-जुग पड़ी गळा में रीजै
आवै नखराळ्याँ-छणगाळ्याँ
हरी बैल हो फळली रीजै
अम्मर नाऊं रहे गरियाळो
जे भी खडज्या कटज्या काळो
एक मोती टूट चल्यो
पो’ पूरी करजे माळा
म्हारा गांव का गरियाळा।