सुण टीटूड़ी!

इयां ठिहूक

कर दे सरणाटै रा टूक।

जाडौ, एक अबोलो ठाडौ

गांव-गांव रै घर-घर लाडौ।

कोई गेरग्यो चुप रो गाडौ

चालै पून हालै रूंख

सुण ठीटूड़ी।

इयां ठिहूक।

सबदां-सबदां अरथ गमाया

भाव-न्याव कद आडा आया

जीभ सूकगी बिना हलायां

आंख्यां रै बट

बहगी हूक!

बात, बतकहां बेची खाई

कविता-कविता जमगी काई

अभिव्यक्ति री लाश, कसाई

पीसा साटै आया फूंक।

सुण ठीटूड़ी

इयां टिहूक

करदे सरणाटै रा टूक।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : पृथ्वीराज गुप्ता ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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