गळी-गळी पीटती ढिंढोरो
सबसूँ कहती फरती
असी जाणती मन मै तो
म्हूँ याँसूँ प्रीत न करती
सुण बात पड़ौसण म्हारी
साजन गीतां को बोपारी।
बाबुल आग्या बाताँ मैं भूल में पड़ी महतारी
बीरा नै भी माथै आती अला बला ज्यूँ टाळी
बहरुप्या सो बर हेर्यो अर म्हारी भाँवर पाड़ी
यो दुनियाँ को सताया
अर म्हूँ तकदीराँ की मारी।
कोई केवै परबीती म्हूँ घरबीती बखाणूँ
अब तू तो दाँई-दड की थँसूँ काँई भेद रखाणूँ
कुँण पै गाजूँ-गरबूँ अर कुण का जीवाँ पै माणूँ
साजन धोरे धोरे डोलै
अर म्हूँ धूमूँ क्यारी क्यारी।
यो बी काँई मनख जमारो यो बी काँई जीबो
घड़ी घड़ी में दुख सह्बो पलपल में आसूँ पीबो
म्हारी पाँती आयो छै बस फटी ओढणी सींबो
म्हूँ पनियाँ बिना उभाणी री
म्हूँ अंगिया बिना उघाड़ी।
ये आँसू अर ये आखर यो कागद अर या स्याई
म्हारा साजन ईं दुनियाँ मै याई पूँजी पाई
घर घर बाताँ बणगी
दर दर होगी लोक हँसाई
ऊमर लागै छै ओळमो
जोबण लागै छै गाळी।