सरवर रै दरवाजै जाकर
पून खड़ी बतळावै
लैरावै मन मांय लहरिया
खुद नैं खूब झुलावै
सरवर रै दरवाजै जाकर
पून खड़ी बतळावै।

बिरछ अहूंकै, हंसै पानड़ा
डाळ्यां खड़ी लजावै
तावड़ियो आ कान उमेठै
छायां रसियो गावै
सरवर रै दरवाजै जाकर
पून खड़ी बतळावै।

गोरी रो घर दूर, गोरड़ो
चालै पगां उभाणै
ओक जिस्या घर देख-देखकर
भोळो नहीं पिछाण
सरवर रै दरवाजै जाकर
पून खड़ी बतळावै।

घुंघट हारी फोटू है पण
चैरो कियां दिखावै
चढी छात पर रूप नवेली
सैनां सूं समझावै
सरवर रै दरवाजै जाकर
पून खड़ी बतळावै।
स्रोत
  • सिरजक : मधुकर गौड़ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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