बड़ी बाणीजां नीत हित देस जांणो बुरी, नफै हूं भलो ओ बुरो नापै।
कुलखणां देस हित काज करसी किसा, दुख्यां री लूट हूं नहं धापै॥
बिणज रो नांव ले आयाबण बापड़ा, तापड़ा तोड़िया राज तांई।
मोको पा मुगळां रो माण जिण मारियो, पोखो थां कुणकयां समझ कांई॥
धोळ दिन देखतां नबाबी धपाई, संताई नांखो मत सरम साई।
धरा हिंदवाण री खपाई, सफाई नांखो मत सरम साई॥
धरा हिंदवाण री दाबर्या धकै सूं, प्रगट मैं लड़यां ही पार पड़सी।
संकट में एक हुय भेद मेटो सकळ, लोक जद जोस हूं जवर लड़सी॥
मिळ मुसळमान रजपूत ओ मरैठा, जाट सिख पंथ छंड जबर जुड़सी।
दौड़सी देस रा दवियोड़ा दाकल कर, मुलक रा मीठा ठग तुरत मुड़सी॥
भरोसो छंड फिरंगाण रो भ्रम्योड़ा, निरखती नफो नुकसण नक्की।
नवो नित धान करसांण निपजावसी (तो) पावसी फतै हिंदवाण पक्की॥