गीत चित्त-हिलोळ

दीनां पाळगर धन सुतन दसरथ, सकज सूर समाथ।

रिणखेत भंजण सकुळ रावण, नेतबंध रघुनाथ।

तौ रघुनाथ रे रघुनाथ,

रिवकुळ आभरण रघुनाथ॥1॥

तन स्याम सघण सरूप ओपत, सुपट बीज सकाज।

रिम कोट हण जन ओट रक्खण, मोट मन महराज।

तौ महराज रे महराज,

माहव मोट मन महराज॥2॥

हक-बगां लाखां असुर हरणौ, जुधां करणौ जैत।

चाढणौ कुळ जळ दळद चौजां, बाढणौ बिरदैत।

तौ बिरदैत रे बिरदैत,

बिरदां धारणौ बिरदैत॥3॥

बळ तथा अबखी बखत बेली, तवै जगत तमाम।

नित किसन किव रट नाम निरभै, रसन स्त्री रघुराम।

तौ रघुराम रे रघुराम,

रजवट धारियां रघुराम॥4॥

स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी काव्य ,
  • सिरजक : किसनो आढो ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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