लाजै मायड़ भासा थांरी, लाजै मायड़ भौम रै!

कूड़ी बाण छोडौ भाईड़यं कूड़ी स्यान छोडौ रै।

लाजै मायड़ भासा थांरी, लाजै मायड़ भौम रै॥

वेद उपज्या इण धरणी पर, वेदां में बखाणी रै।

वेदां रै बखाण सूं तो सीधी नीसर आई रे॥

रिसियां रै परताप तो कूंचौ-कूंचौ छाई रै।

कवियां री कलमां में तो मात सुरसत बणगी रै॥

कूड़ी बाण छोडौ भाईड़ां कूड़ी स्यान छोडौ रै।

लाजै मायड़ भासा थांरी, लाजै मायड़ भौम रै॥

गढपतियां री ढाळ नैं तलवारां मांही सजगी रै।

वीरां रो तो बागौ बणगी, बेर्यां माथै कड़की रै॥

सतवंतिया रौ सत बणगी, जोहर रास नचायौ रै।

कामीड़ां तो जमपुर देख्यौ, पल्लै कीं नी पायौ रै॥

कूड़ी बाण छोडौ भाईड| कूड़ी स्यान छोडौ रै।

लाजै मायड़ भासा थांरी, लाजै मायड़ भौम रै॥

कवि चन्द्रवरदाई काळ बणनै बैठ झरोखां आयौ रै।

मार-मार मोटी तोई, भासा ग्यान करायौ रै॥

इण रै ही परताप सूं तो मोहम्मद गौरी मर्यो रै।

अजमेरी चौहाण राजा धरम सनातन पाळ्यौ रै॥

कूड़ी बाण छोडौ भाईडां कूड़ी स्यान छोडौ रै।

लाजै मायड़ भासा थांरी, लाजै मायड़ भौम रै॥

रैदास सरीखा गरूवां मीरां नैं साचौ पाठ पढायौ रै।

भाव-भगती में इसी डूबी, देख जगत चकरायौ रै॥

मिसरी सी मीठी भासा में गिरधर गोपाळ रिझायौ रै।

सैंदे भगवान आप परगट्या, मीरां नै दरस दिखायौ रै॥

कूड़ी बाण छोडौ भाईडां कूड़ी स्यान छोडौ रै।

लाजै मायड़ भासा थांरी, लाजै मायड़ भौम रै॥

अजमलजी रा तीखा बैण द्वारकानाथ मन भाया रै।

रामदेवजी रो अवतार ले, मात मैणादे घर आया रै॥

पिछम धरा रौ देव रामदेव पीरां रौ पीर कैवायौ रै।

धजा फरूकै असमानां इण री परचां रौ कोई नीं पार रै॥

कूड़ी बाण छोडो भाईड़ां कूड़ी स्यान छोडौ रै।

लाजै मायड़ भासा थांरी, लाजै मायड़ भौम रै॥

करमा री भौळी भासा तिरलोकीनाथ नैं भायी है।

गटागट जीम्यौ खीचड़ौ, डिकार भी नीं लीधी रै॥

मीठी, मधरी इण भासा री बाण भगवान नैं घण सुहाई रै।

थै परभासा रा हेटवाळ बण क्यूं नकटाई धारौ रै॥

कूड़ी बाण छोडौ भाईड़ां कूड़ी स्यान छोडौ रै।

लाजै मायड़ भासा थांरी, लाजै मायड़ भौम रै॥

सगळा संत, सती अर सूरमा राख्यौ मान सवायौ रै।

देव-पित्तर जूंझार भोमियां हाको हाक मचाई रै॥

इटली सूं टेस्सीटोरी आय अठै राग राजस्थानी गायी रै।

जॉर्ज ग्रियर्सन सुनीति चटर्जी साख इण री बधाई रै॥

कूड़ी बाण छोडौ भाईड़ां कूड़ी स्यान छोडौ रै।

लाजै मायड़ भासा थांरी, लाजै मायड़ भौम रै॥

लंगा अर मांगणियारां गूंज सात समंदा पार गुंजाई रै।

गुलाबो अर कोहिनूर जैड़ां घमक धणी मचाई रै॥

लिखारां री कलमां घसगी, कवियां कंठ गळग्या रै।

झार-झार रोवै मायड़ भासा, इसड़ा कांई जणिया रै॥

कूड़ी बाण छोडौ भाईड़ां कूड़ी स्यान छोडौ रै॥

लाजै मायड़ भासा थांरी, लाजै मायड़ भौम रै॥

कै तो बीज बदळग्यौ इण धरणी रौ कै लागी खोटी निजर रै।

कै तो जापा बिगड़ग्या मांवां रा, कै गळसूंठी खोटी रै॥

कै तो सतियां रौ सत गमग्यौ, के खागां रै लाग्यौ काट रै॥

कै तो सापूती रांड हुयगी, भरम कूड़ियो पाळ्यौ रै॥

कूड़ी बाण छोडौ भाईड़ां कूड़ी स्यान छोडौ रै।

लाजै मायड़ भासा थांरी, लाजै मायड़ भौम रै॥

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक 5 ,
  • सिरजक : विनोद सारस्वत
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