किरोड़ां कंठां में गूंजै, मायड़ भासा राजस्थानी।

कुण नीं जाणै इणनै, मीठी इमरत वाणी॥

रूड़ा रूपाळा दूहा छंद, घणा रासा अर ख्यातां।

इणरी मरोड़ जगचावी, मन मोवै कथावां बातां॥

उधारी बोली क्यूं बोलां, क्यूं मेलां जीभ अडाणी।

कुण नीं जाणै इणनै, मीठी इमरत वाणी॥

सोनै सो इतिहास मंड्यौ, भर्‌यौ पूर साहित भंडार।

इणरौ रुतबौ है ऊंची, सुरसत री वीणा रा तार॥

जग में स्यान सवाई राखै, वीर भू री वीरवाणी।

कुण नीं जाणै इणनै, मीठी इमरत वाणी॥

मीरां री मायड़ भासा, होतां पूत बणी निपूती।

कवियां री कलम जगावे, कद जागैला जनता सूती॥

घणी रची सतसईयां इणमें, मोटी धणिवाणी।

कुण नीं जाणै इणनै, मीठी इमरत वाणी॥

अै शकुनी रा भरमाया, कद निज मायड़ नै पूजी।

मायड़ भासा में मांगै वोट, पण जीत्यां पछै बोली दूजी॥

थोथा भासण झूठी दिलासा, नेतावां री आदत पुराणी।

कुण नीं जाणै इणनै, मीठी इमरत वाणी॥

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : बस्तीमल सोलंकी भीम ,
  • प्रकाशक : अपरंच प्रकासण
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