झूम गांवतो, मदमातो, महिनो आयो रे।

रंग उड़ातो, फाग खेलतो, फागण आयो रे॥

उन्मादी बायरियो छेड़े बांसुरियां री तान,

छैल-छबीली अलबेली पून चलावै बाण,

मिनख मतवाळा नाचै रे धरती मैंदी राचै रे,

आज जमीं रे हाथां आभो गाल रंगायो रे।

कर सोळै सिणगार रितु अब खेलण लागी फाग,

सगळां रै माथां पर सौवै फूलगुलाबी पाग,

दिसावां झूमै गावै रे लुगायां मन भरमावै रे,

आज प्यार रै पनघट माथै मेळो मचग्यो रे।

तबला देवै ताल मंदिरां मांय छिड़ी मिरदंग,

पड़े डांडिया, गळी-गळी में गूंजण लागी चंग

लावणी चौमासे रा गीत सुरीलो सरगम रो संगीत,

आज बहारां रै पग रुणझुण घुंघरू बाज्यो रे।

रंग-सुरंगी सड़कां, माथै उड रही लाल गुलाल,

गोखै बैठी गोरड्यां रा मत पूछो थे हाल,

नैण री नैणां सूं है बात ऊपर सूं इमरत री बरसात,

कजरारी आंख्यां रो काजळ ठुमकण लाग्यो रे।

रस्ते बै'ती राधा आगै रुकग्यो मोहनियो,

रंग मती नाख छैल-भंवर म्हारो भीजै ओढणियो,

सास म्हनै ताना मारैला बा बैरण बुरी बिचारैला,

मारग नै दै छोड आभै सूं सूरज ढळ रह्यो रे।

हिय-हरखातै हेड़ाऊजी सूं सज रह्यो बारह गुवाड़,

डागां-बिस्सां बीनै थामी नौटंकी री नाड़,

होय रैयी रमतां री भरमार, अमरसिंह थाम रैयो तलवार,

अचारजां में हाड़ी नूवों अलख जगायो रे।

चारूं फेरी नवरस घुळ रह्या तिरमिर भरया कढ़ाव,

बीकाणै री बस्ती'र जाणै बरसाणै रो गांव,

छूट रैयो पिचकाऱ्यां सूं रंग डोलच्यां सूं छायो नवरंग,

हरषां-व्यासां रा दिल भीज्या नेह बढ़ायो रे।

दम्माण्यां में स्सै गेवरिया खेलै रळ-मिल खेल,

रंग उडाता, धूम मचाता, कर रह्या ठेलमठेल,

चहूं दिस खुशियां है भरपूर 'बावरा' सै नसै में चूर,

मन रा मोती पोय, सग्यां से मन ललचायो रे,

झूम गांवतो, मदमातो, महिनो आयो रे॥

रंग उड़ातो, फाग खेलतो, फागण आयो रे॥

स्रोत
  • पोथी : पणिहारी ,
  • सिरजक : बुलाकी दास बावरा
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