साजण रे थांकी ओल्यूं म्हानै आवै घड़ी-घड़ी

हिवड़ा रा हंसा म्हारा-थानै नरखूं-खड़ी-खड़ी

साजण झांकू डागल्यां सूं,

कर-कर ऊंची अेड़ियां

पग डंडियां-झांकी घणी,

नैण थक्या हेस्यां

रेसम सो थांको डीळ सजण जळ बूंदां बखर पड़ी

हिवड़ा रा हंसा म्हारा...

असी जाणती म्हूं पगळी ज्ये

थांनै बांधती नैणा-डौर

सुवो बना रखती हिवड़ा

अर जिमाती हिवड़ा कौर

पड़ी मझांरां बीच'क जिवड़ो जावै कड़ी-कड़ी

हिवड़ा रा हंसा म्हारा...

सूण जगाऊं कुरजां सुण लै

सांची-सांची बात बता

बिछड़्या साजण कदी मिलै

कींया-सूखै अमर लता

कदी उगाड़े घूंघट म्हारौ-बतळा सुगण चढ़ी

हिवड़ा रा हंसा म्हारा....

साजण कट्टर म्हारा अतरा,

ज्यूं-लागे-झाड़ी-बौर

ऊपर लाळी मन हरै-रे,

पण भीतर घणा कठौर

मोती पौ-पौ थांका नाम की गला हार जड़ी

हिवड़ा रा हंसा म्हारा...

बीच भंवर नाव छौड़ कै, आप पूगग्या-पार

असी बगत म्हारी नाव डूबजा, हंसै-जगत-सिरदार

झांकौ अम्बर म्हारा साजण बरखा उमड़ पड़ी

हिवड़ा रा हंसा म्हारा...

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत अगस्त 2005 ,
  • सिरजक : रशीद अहमद पहाड़ी ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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