म्हूं सबद ब्रह्म रो चेलो!

सबद रीझतौ, सबद खीझतौ, मिल्यौ गुरू अलबेलो!

सबद नाथ रै कुमकुम चोखा,धरूं भाव रस भरिया,

सबद अमीणी राधा मीरां,सबद सखी सांवरिया,

नवधा भगति करूं आप री , सुणो सबदजी हेलो!

म्हूं सबद ब्रह्म रो चेलो!

सबद गुरुजी भाव पियाला ,करै हेत जद पाया,

अवर नशा सब ओछा लागा, अणहद आणंद आया,

चढी खुमारी, तन मन भारी, पड़तां म्हानै झेलो!

म्हूं सबद ब्रह्म रो चेलो!

सबद गुरुजी भेद बताया,पकडो लय पगदंडी,

मिल़सी थांनै उण दिस मंदिर,जठै फरूकै झंडी,

झालर झणकै,बजै नगारा, वठै वसै अलबेलो!

म्हूं सबद ब्रह्म रो चेलो!

सोरठ, दीपक ,काफी, तोड़ी, यमन भैरवी भावै!

सबद गुरू अनहद आलापै, सबद अनलहक गावै!

आज धन्य नरपत ने कीधौ, बरसावै रस रेलो!

म्हूं सबद ब्रह्म रो चेलो!

स्रोत
  • पोथी : कवि रे हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : नरपत आशिया “वैतालिक”