फूलां री थाळ्यां मं सौरभ भर जाती

रुत री बा मनवार कठै ज्यो मन भाती

ठोर-ठोर कोयल री बांणीं

गांव-गांव अर ढाणीं-ढाणीं

कर सिणगार अणूता बणता-

दरखथ धरती राजा राणीं

मून बेलड़्या फेर चेत मं बतळाती

रुत री बा मनवार कठै ज्यो मन भाती

गाबा देह उतरता बेगा

चूहा थान कुतरता बेगा

बेगा जीव आसरा ताणीं-

सगळा धरा कुचरता बेगा

साख-साख बेसाख बाग मं कुमळाती

रुत री बा मनवार कठै ज्यो मन भाती

दिन बधता अर रातां घटती

पथ सूनां वट छायां बंटती

माटी रो कण-कण झुळसातो-

दोरी जेठ दुपार्‌यां कटती

छपरां मं पण दादी चूल्हो सुळगाती

रुत री बा मनवार कठै ज्यो मन भाती

लुआं बाजती सूंटा आता

हरख हिया मं नई जगाता

करता त्यार हळा नै रै जद-

करसां नभ पै नैण लगाता

साड बादळी घट पिणघट सूं भर ल्याती

रुत री बा मनवार कठै ज्यो मन भाती

सावण री रुत आई जाणीं

खग पंखा री छतरी ताणीं

नैणां काजळ घाल बीनणीं-

बरखा आती स्याणीं-स्याणीं

हीण्डा हीण्डा सहेल्यां सुधबुध बिसराती

रुत री बा मनवार कठै ज्यो मन भाती

चमकै बिजळी ओर छोर सूं

नीं बिलगै रै सांझ भोर सूं

हो जाता बेरा भादो मं-

गरजै हा घन घणी जोर सूं

भरता ताळ तळैया नन्दयां उफण्याती

रुत री बा मनवार कठै ज्यो मन भाती

तरुवर तरुवर जड़ां फूटती

होठां माळै हास छूटती

फूल-फूल सूं लदती कंवळी-

डाळ्यां री जद कमर टूटती

आसा री पायल आसोजा खणकाती

रुत री बा मनवार कठै ज्यो मन भाती

भूल भाल कर थारा म्हारा

सुख नै सौ-सौ बार निहारा

रैता घुळमिळ हिळमिळ झिळमिळ-

दीया री बैज देख कतारां

जणां-जणां रो दुखड़ो काती हर जाती

रुत री बा मनवार कठै ज्यो मन भाती

ठण्डी-ठण्डी भाळ चालती

सुख पळ-पळ तन थाळ घालती

न्हाती घणीं तळाई मळ-मळ-

रुतड़ी लाज समाळ चालती

मंगसर मं भावां री कविता भरमाती

रुत री बा मनवार कठै ज्यो मन भाती

सै'रा मूण्डा गाल सूजता

जीव जिनांवर घणां धूजता

रैता किड़किड़ दांत किड़कता-

न्हाया बिन ही देव पूजता

पाळा पड़ता पोसां काया अकड़्याती

रुत री बा मनवार कठै ज्यो मन भाती

माथा माळै रीती मटकी

भाटा ऊपर क्यूं नी पटकी

घणां उडीक्या पाछै आया-

बाट जोवती निजरां अटकी

रितुराज रो सुवागत सरस्यूं मुळकाती

रुत री बा मनवार कठै ज्यो मन भाती

अंग-अंग रंगातो फागण

चंगा थाप लगातो फागण

नाचै झूमै लोग लुगायां-

मदमाती-सो आतो फागण

गीत-गीत मं जोबन रा गुण मिल गाती

रुत री बा मनवार कठै ज्यो मन भाती

आं रो बां रो संग बिगड़ग्यो

जीवण रो अब ढंग बिगड़ग्यो

आज बिगड़ग्यो काज मिनख रो-

रुत रो सारो रंग बिगड़ग्यो

खतरा मं पड़गी आपां री कुळ थाती

रुत री बा मनवार कठै ज्यो मन भाती

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत अगस्त 2005 ,
  • सिरजक : मुकेश आमेरा ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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