ल्यो संकल्प करां ने आपां, अपणी मायड़ भाषा थापां।

अपणा आंगणां अपणा मांडणा अपणी धूणी तापां॥

ल्यो...

लेल्यो नै ढोल्या कौ ढोल,

डंकौ दै यूं बोलौ बोल।

ईंको मोल घणौ अनमोल,

हिये तराजू छोका तोल॥

करां लड़ाई मिलै मानता होज्या घर-घर धापां।

ल्यो...

या छै पन्ना कौ बलिदान,

या छै राणा की शान।

या मीरां कौ भगवान,

सूर्यमल्ल का मीठा गान॥

करमा अर किसना की भासा छोटी क्यूं कर नापां।

ल्यो...

जबई गळैगी थांकी दाळ,

छोरा की या बणज्या ढाल।

ऊंचा पद पै बैठै लाल,

सूरज ज्यूं चमकैगौ भाल॥

राजस्थानी घोड़ा की दिल्ली तांई गूंजै टापां।

ल्यौ...

स्रोत
  • पोथी : आंगणै सूं आभौ ,
  • सिरजक : प्रेम शास्त्री ,
  • प्रकाशक : उषा पब्लिशिंग हाउस ,
  • संस्करण : प्रथम
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