छोटी बीनणीं पीर गई है बड़की छाती छोलै

म्हारै गोडां दरद घणो झाटी नै कुण खोलै

टाबर-टोळी, टोळी मिलग्या एक नहीं कुल सात

ल्यो करल्यो बात।

पैली बिरखा हुई मोकळी सावण सूखो रहग्यो

भादूड़ै रै रंग ढंग सूं तो, काळ पड़ै है कहग्यो

बिजळी पर बजराग पड़्यो है, करी रामजी घात

ल्यो करल्यो बात।

जेठ तपै ज्यूं तपै भादवो फागण-सी पवन उड़ै है

जितरी साख पकड़नी चावां उतरी साख छुड़ै है

भाग भोगना चकरी चढ़ग्या लगी करम नै मात

ल्यो करल्यो बात!

खड्यो खुमाण्यो खाडा खोदै जोर् ‌यो जोर लगावै

हाजरियो कोसां दूरै है, धनियो राख उडावै

झड़ बिन ही झड़ता-सा लागै, कलपतरु रा पात

ल्यो करल्यो बात।

मान्यां की तो कोनी मानी, पांची बणगी पंच

दसरथ जी कै आई ग्यारसी, टंवरो होग्यो टंच

परिवारां को इस्यो निजोजन तात तात कै तात

ल्यो करल्यो बात।

पैली कैता लडू कजोड़ा, नारंगी और पतासी

बादमी और इमरती बाई कांई और बतासी

नुवां नावां का इस्या झमेला माथै नहीं समात

ल्यो करल्यो बात।

और कांई बतळावां थासूं बातां मधरी पड़गी

चार्ज हुया सूं फेर बोलस्यां करंट कमेड़ी अड़गी

ताकत रा ही तोल मोल है खोल दिखाई जात

ल्यो करल्यो बात।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत अगस्त 2005 ,
  • सिरजक : कल्याणसिंह राजावत ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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