कतरो भी नामी व्है तीरथ, भगत लूटीजै पण्डां सूं।

दुनिया घणी आगै बधगी

जूनी सगळी बातां लदगी

सांचा धक्का खावै बापड़ा

अपणांस री बातां गमगी

ले उधार घी नित गिटकै, कलेवो करीजै अण्डां सूं।

राज संस्कृति सभ्यता

सगळा बणग्या ब्रितानी

भाषा अर पैराव भूल्या

धर लीनी सै बेईमानी

धरम धजा री चिंदी—चिंदी, पंथ बिगड़ीजै गुण्डां सूं।

खाती—पीली बातां रा ठसका

सेवा नामै लूट माचगी

तरक्की रा थोथा वादा

मेहगांई घर—घर नाचगी

कोई भी दळ जीतै चुणाव, राज चलीजै झण्डां सूं।

बूढा बिरधाश्रम में रैवै

धरमथळां सूं डरै नारी

हरेक आडी गुण्डा—गरदी

भला मिनख रो जीणो भारी

राम—राज रो सुपनो लेण्यां, गरीब कूटीजै डण्डां सूं।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी गंगा जनवरी-मार्च 2015 ,
  • सिरजक : विनोद सोमानी ‘हंस’ ,
  • संपादक : अमरचन्द बोरड़ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ज्ञानपीठ संस्थान
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