आगै आग चांनणो, अंधेरो पाछो भागै रे!
रात गई झाँझरको आयो, धरती-माता जागै रे!
जे थे धरती रो प्रण राखो, कदै न वा तो डोलै रे!
हळ में जोत जग्याँ बीजा में, प्राण पड़ै, मुख बोले रे!
बादळ गाजै, लोर उठै, आभै में बिजळी चमकै रे!
खेत खड्या सरणावै, परवा पवन चले, मे बरसै रे॥
मिंणती मजूरी करै जिकां पर, धरती कदै न दोरी हो!
हळकी होज्या फूल बरोबर, काया सुख में सोरी हो॥
खुल्लैखालै धन-कुबेर अब, कियां करै साहूकारी!
चोरबजारी पर जीवणियाँ री देखो है मत मारी॥
अै कपूत धरती-माता रा, नीच बण्या चौड़े-धाड़ै!
पुण्य कर्यां, कद पाप धुपैला, क्यूं दुख दे, क्यूं मन बाळै!!
या दातारी काम न आसी, नुई क्रान्ति सिसकारै है!
बच्चो-बच्चो जाग रह्यो, अब चोरां नै ललकारै है!
घणो अँधेरो गैल न सूझै, मन क्यूं गोता खावै रे!
मन में हूँस मोकळी है तो, क्यूं नी पग सरकावै रे!
तारां री छइयाँ में सो मत, सुपनो झूठो आवैलो!
सुपनै ने जो साचो समझै, वो कुमौत मर जावैलो!
भेद भरी दुनियां में मोटा मिनख कुचाल सदां चालै!
मौज अमीरी री पांती में, और गरीबी घर घालै!
गहरी नींद न सोवै जनणी, भार मरै, पौड़ा आवै!
कद सुख चैन गरीबी पावै, कद धरती मँगळ गावै!
हठ ना कर, भोळो तू कोनी, देख जमानो खोटो है!
नैणां में सँकड़ी दुनियां रो, नक्सो कदै न मोटो है!
चौड़ी गैल चालसी वो तो, कदै न ठोकर खावैलो!
आडो, टेढो, ऊँळो-सूँळो, चालै वो रुळ जावैलो!!