ऊंडा पाणियां नदियां उतरतां
झड़ मंडियां खग-झाटां।
सगती! कीजै सहाय सेवगां,
बहतां घाटां-बाटां॥

मेवासां मांझल ठग मळियां,
नाहर आयां नेड़ां।
कुसल आपरां राखै,
‘करनी’ बैठां सायर बेड़ां॥

बैरी विषधर सरब निवारै,
बळती लाय बुझावै।
लोवड़ियाळ तणां भुज लांबा
आंच न दासां आवै॥

डाकण भूत कुवै पग डगतां,
कड़की बीज अकासां।
करतां याद मेहासुत “करनी”
देव! उबेळो दासां॥

बड़ांबड़ी किनियाणी “बांका”
पोष पूजगां पाळे।
देस विदेस मँहीं डाढ़ाळी,
राजदवार रूखाळै॥
स्रोत
  • पोथी : माताजी रा छंद ,
  • सिरजक : आसिया बांकीदास ,
  • संपादक : चन्द्र प्रकाश देवल ,
  • प्रकाशक : चारण साहित्य शोध संस्थान प्रकाशन, अजमेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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