काळी बादळी
पाणी का समद नहीं ल्याई रे
मैने बादळी बुलाई नहीं आई रे।
गाँव होगा उजाड़
सूखी धरती सूखौ माड़
सूखी नीमड़ी की ढाड़
सूखै बंदा भीतर झाड़
जमी लीर-लीर होगी
खेत होगा फाड़-फाड़ बुरी आई रे
मैनें बादळी बुलाई नहीं आई रे।
बादळा की डाबरी
आ रै काळी बादळी
छोरा-छोरी भूखा रोवै
भ्या रै भैंस बाखड़ी
ढाँडा खावै पछाड़
ताती तण्ण चालै भ्आड़
ऊँबा खेत दिया ब्आड़
भैंणा दाणा हो तो झ्आड़
बीरा आगौ उपाड़
अरी आच्छ्याँ देख भ्आड़
किस्याँ भी तौ चूलौ ब्आड़
मरी बादळी बुलाई नहीं आई रे।
सूखा तड़ाव मं
माछड़ी का हाड है
सेठाणी नं चावड़ राँघ्या
खा लै बेटी माँड है
काम हाथ से छिटक दूर होगौ
बैरी रामजी छिटक दूर होगौ
ऊँट रूँख से छिटक दूर हौगौ
ढोला मारू से छिटक दूर होगौ
ओ म्हारी कोयल थारी टूटगी सगाई रे
मैनैं बादळी बुलाई नहीं आई रे।
म्हारी भैंणा का म्होंडा की चिड़िया उडगी
म्हारी काकी का चूड़ा की लाख मुड़गी
म्हारी भाभी की रीती बिलौणी ढुड़गी
ऊँबा झूँकै भाई-भौजाई रे
मैनैं बादळी बुलाई नहीं आई रे।
काळी बादळी
पाणी का समद नहीं ल्याई रे
मैनैं बादळी बुलाई नहीं आई रे।