हेली, मेळो लाग्यो भारी।

कांई लेवण री मन धारी॥

भांत भांत रा खेल तमासा मिनखां रा उणियारा।

मेळा में मेळ कठे है, दीखै सगळा न्यारा।

मोल भाव कर बिणज करै है ये सगळा बिणजारा।

क्यूं आयो कांई लेबा नै, मति गी थारी मारी॥

खाल्यां पील्यां मौज मनावां चार घड़ी रै तांई।

झूला झूल्या भंवर जाळ रा चक्कर भूळां खाई।

गाँठ खोल कर पाछा आया करके खरच कमाई।

खाली हाथ घरां जद पूग्या, हंसिया सब सन्सारी॥

खोल दुकानां हाका पाड़ै कर कर गरज बुलावै।

लेवणियां भी मोल भाव कर हुंसियारी जतळावै।

इक दूजा नै ठगता सगळा पण नी कोई ठगावै।

चौरासी का चक्कर में, दीखै सब बौपारी॥

कितरा आवै कितरा जावै, कुण कुण नै पहचाणै।

कोई हाथ पसारां घूमै, कोई किरत बखाणै।

गरजमंद बण घणा घूमता, कोई मौज्यां माणै।

भीड़ भाड़ में संगी छूटा, नौळी गमगी म्हारी॥

नजरां नजर नजारा मारै, यो मिनखां रो टोळो।

नजर चूकतां ही हो जावै, छन में समझो रोळो।

गया हूंस कर पाछा आया करके मनड़ो मोळो।

मिली मन री साथण कोई, रैगी आस कंवारी॥

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो ,
  • सिरजक : कैलाश मण्डेला ,
  • संपादक : नागराज शर्मा ,
  • प्रकाशक : बिणजारो प्रकाशन ,
  • संस्करण : अंक 36
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