मन में दियो जगमगावै तो, बारै अंधकार रोवै।

तन री ओप सदा सूं हीणो, हियै चानणो दुख धोवै॥

सुख चावै वो दुख बिसरावै, तिरस्यो तृष्णा नै ढोवै।

कोरो ज्ञान भँभूळो खावै, लागी लगन प्रीत जोवै॥

दुख माँजै विपदा री काळस, उजळो राग गीत गावै।

पीड़ सहण पड़ ज्यावै तो मन, हिरखै आणंद-फळ पावै॥

सीळी धरती, सीळो पाणी, सीलो माणस तप साधै।

आग बुझावै नहीं आग नै, बिनती निंवै, प्राण बाँधे॥

बिसवासी मन विष पी लेवै, बिना हेत इमरत खारो।

दर्द पिछाणै चोट सुरीली, प्रीत ओळखै मन प्यारो॥

भीतर मन रे आँच ऊपड़ै, तो तप्स्या रो तन सीळो।

जे भीतर है हर्यो-भर्यो दुख, बारै सिसकै सुख पीळो॥

कोरै सुख में दुख निपजै है, दुखी हिये में फूल हँसे।

मन तोलो घर बाट बराबर, सुखदुख भेला सदां बसै॥

अपणो मारण आप जोयलो, आस पराई नित भीखो।

साँच जगावै जोत ऊजळी, पराधीनता दुख जी को॥

घुळ-घुळ बाती लौ दरसावै, पिवै तेल दीपक जागै।

मनड़ो जद संघर्ष सजावै, तो पथ रा पग हो आगै॥

स्रोत
  • पोथी : सैनाणी री जागी जोत ,
  • सिरजक : मेघराज मुकुल ,
  • प्रकाशक : अनुपम प्रकाशन जयपुर
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