हळवां-हळवां पूरब में यो, सूरज उगतो आवै जी।
काची कंवळी कूंपळ थिरकै, धरती मौज मनावै जी।
मीठी-मीठी सौरम आवै, बेल उगे मतवाळी जी।
बोझां ऊपर भंवरा भिणकै, झूमै डाळी-डाळी जी।
अरावली सूं फलर-फलर या, पवन झकोरा ल्यावै जी।
नदियां रस भरपूर जोश में, धरती झोला खावै जी।
राणोजी चेतक पर चढ़के, आवैला अब घाटी में।
कट-कटके सिर धड़ सूं न्यारा, मिल ज्यावैला माटी में॥
आज मरण री बेळा आई, धरती रगत सुहावैली।
आज वीर माँ-बहन मांग में, रक्त-सिन्दूर चढ़ावैली।
जाणै कितणा घाव लागसी, रण-धरती गरणावैली।
जाणै कितणी सरब-सुहागण, देवी-देव मनावैली।
हर हर हर हर महादेव सुण, बैर्यां री काया डोली।
बाँध कमर तलवार पती नै, वीर भीलणी यूं बोली।
जावो म्हारा धरती रा सुख, वीर पती रण में जाओ।
जाओ देश बुलावे थानै, आज़ादी नै घर ल्याओ
जाओ हे रणधीर पिया! पण, पाछो पग मत मेलीज्यो।
धन धरती रा वीर लाडला, वार मोकळा झेलीज्यो।
भालाँ री थे नोक सामनै, छाती बजर अड़ा लीज्यो।
तलवाराँ री धाराँ नीचै, रमता-रमता न्हालीज्यो।
अंग-अंग सूं खून पड़ैलो, हियो चालणी हो ज्यासी।
हेलो फिरसी मेवाड़ै में, जद म्हारो मन हरखासी।
साथ म्हनै भी ले चालो थे, हूँ तलवार चलाऊँली।
बैर्यां रा सिर काट-काट मैं, रणचण्डी बण जाऊँली॥
साथ-साथ रण-शैया ऊपर, साजन सजनी जावाँला।
आज़ादी हित मर ज्याँवाला, धरती स्वर्ग बणावाँला।
थारै बिना भँवर जी म्हारो, हिवड़ो मुँह नै आवैलो।
जे थे जाओ बीर एकला, म्हारो मन मर जावैलो।
छत्री तो अब जौहर करसी, नार सत्याँ हो जावैली।
पण मरजाद निभाणी भीलणी, घुट-घुट के मर जावैली।
म्हँनै पिया कुण बळबा देसी, कुण सती होवण देसी।
कुण म्हारो दुखड़ो जाणैलो, सुबक-सुबक रोवण देसी॥
कुण छाती सूं लगा भँवरजी, नींद म्हनै लेवण देसी।
चुड़लै रो सिणगार कर्यां कुण, बण-ठणकै रहवण देसी।
सतियाँ तो सत उजळो करसी, कद म्हारो मरणो होसी।
चढ़ती उमर दुहाग मिलैलो, अणचाह्या करणा होसी।
रात्यूं झुर-झुर मर जाऊँली, थारी याद सतावैली।
बैरण आभै बिजळी ढोला, सारी रात डरावैली।
वीर भील सुण सक्यो न आगै, डब डब आँख्याँ भर आई।
पण जनणी सी जन्म भूमि री, प्रीत हियै में घिर आई॥
अंग-अंग में बिजळी चमकी, नैण तण्या दो रतनारा।
रण में चाली रक्त-नदी सी, मन में उजळी सी धारा।
मुट्ठी में तलवार चमकती, आँख नहीं थिर रहवण दी।
होठ कट्या लोही सूं भरिया, बात नहीं कुछ कहवण दी।
थर थर थर थर धूजण लाग्यो, वीर-भुजा फड़कण लागी।
लोही भरी आँख सूं जाणे, लाल लपट लपकण लागी।
बोल्यो भील, सुरंगी गोरी! क्यूं अै बोल सुणावै तू।
पत्थर सी करड़ी छाती नै, क्यूं अब मोम बणावै तू॥
मरणो आज देश री खातर, राणै पर अहसान नहीं।
सोरै साँस प्राण देद्यूंला, इतणो निमळो जाण नहीं।
तू चाली तो पग में म्हारै, घट्टी सी बँध जावैली।
मौत शीश पर आती आती, दूर घणी बस जावैली।
माँ माँगेली शीशदान तो, हूँ बचणो ही चाऊँला,
प्रिया हेत मैं बण्यो बावळो, बार-बार मुड़ आऊँला।
डर है, म्हानैं, चूक न जाऊँ, शीश कटण री बेळा में।
जावण दे धण आज एकलो, काल सुणी रण-हेला में॥
सतियाँ री तू बात जाण दे, वे कद थारै पासँग में।
धरती री ए पहली बेटी, जीत सदा थारै सँग में।
वीर सत्याँ जद कूद आग में, राख राख हो जावैली,
कई नवेली नार सुहागण, बैर्यां में पड़ जावैली।
कितणा रो सत डिग जावैलो, कितणी लाज लुटावैली।
कितणी धाड़ां मार-मार यूं, अपणो आप मिटावैली।
कितणी मार कटारी मरसी, गउआँ सी डकरावैली।
तड़प-तड़प के कई भूख सूं, बिना मौत मर जावैली॥
नान्हा टाबर बिलख-बिलख के, 'माँ-माँ' कह रूळ जावैला।
सेलाँ री तीखी नोकाँ पर, कई उछाळ्या जावैला।
महलां सूं सिसकार सुणैली, लपटां लाज उठावैली।
माँ-बापां री बूढ़ी आँख्यां, बार-बार भर आवैली।
कितणी गर्भवती मातावाँ, माँ कहतां शरमावैली।
कितनी बहणां भाई कहती, बैरी सूं डर जावैली।
गळी-गळी में रज-रज भीतर, लाल-लाल लोही पड़सी।
आजादी हिचक्याँ भर रोसी, पग-पग पर ल्हासाँ सड़सी॥
पण तू अपणो आप बचायाँ, घाटी-घाटी में फिरिए।
आजादी री लाज राखजे, कदै न बैरी सूं घिरिए।
थारा गीत मरण वेळा में, गूंजैला जद घाटी में।
हार्या-थक्या वीर गति पाता, म्हे भी सुणस्याँ माटी में।
कण-कण नै हे गोरी थारी, बाताँ कदै न भूलै ली।
चाहे यो इतिहास भूलजा, जनता कदै न भूले ली।
इतणो कह झट एड लगाई, घोड़ी ठक-ठक चाल पड़ी।
झिर-मिर झिर-मिर बरसण लागी, धण री आँख्यां बड़ी-बड़ी॥