म्हारै मनवा में मांची खलबली
म्हारै दिल कै गर्यालै हलबली
कुण बांचै मन का भाव नै रै
कुण खांचै तरती नाव नै रै
म्हारै पाँवां मैं चालै गलगळी॥
बोलतो गर्याळो होगी होळी की सी लाई
आंगणा की गंध च्यारूं मेर गरणाई
म्हूँ लाज्याँ मर गई लाज सूँ
अब सरगम निकले सांस सूँ
म्हारी काया होगी मखमली॥1॥
भेद गयो काळज्या नै, नेण को निसाणो
पळ—पळ रूठबो’र पळ में मनाणो
प्रीत की डगर कांई ठोर न ठिकाणो
कुण बीज बीत का बो ग्यो।
म्हारै नैण नसीणो हो गयो
बिन बातां ही छूटै खलखली॥2॥
नींद नहीं आवै चले फिरे भटकाव में
रोज—रोज मीठा सपना आवै तड़काव मैं।
नहीं टिकै नैण ठोर नाप लेवै गांव नै
तन का पखेरू उड़ हेर लेवै छाँव नै॥
अब आछ्यो लागै छेड़बो
मन की खड़क्याँ नै हेड़बो
सारी सखियाँ बोलै चुलबली॥3॥