भायां आज कमर कसल्यो रे, देश नै हर्‌यो बणावां

सांझ हथोड़ा हाथां में

लो-पत्थर नै पिघळावां,

घण-घण करती चोट पड़ै

पुळ पल में आज बणावां।

गरीबी दूर भगावां देश नै हर्‌यो बणावां

रेतड़ रै टीबां रै ऊपर

घम-घम घूमर बाजै,

आज बांध ली आंधी नै

बा बैठ खुणै में लाजै,

मां मरु री प्यास बुझावां, देश नै हर्‌यो बणावां

आज उठाले खुरपा-कसिया

बूझा बाढ़ण चालां,

नैर्‌यां सूं पाणीड़ो आसी

उगै भोकला दाणा।

अन्न रा ठाठ लगावां, देश नै हर्‌यो बणावां

आज अपांरा टाबरिया

बण हीरा हमें चमकसी,

दुनियां में भारत रो गौरव

दमदम और दमकसी।

ज्ञान री जोत जगावां, देश नै हर्‌यो बणावां।

गौतम-गांधी रै सुपनै नै

सांचो आज बणास्यां,

संत बिनोबा री बाणी नै

घर-घर जाय सुणास्यां।

हालो सै सपूत बण जावां, देश नै हर्‌यो बणावां

गरीबी दूर भगावां

गीत सै रिळमिळ गावां

सुख-समता सरसावां

देश नै हर्‌यो बणावां

भायां आज कमर कस लो रे, देश नै हर्‌यो बणावां।

स्रोत
  • पोथी : अधूरे गीत ,
  • सिरजक : हरीश भादानी ,
  • प्रकाशक : राजस्थान पुस्तक गृह, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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