अण मापी पीड़ा रो रिसणो
बड़ो ही दोरो चुपचुप जीणो
टूट्यै मन री खिंडती पाटी
आखर लिखणों लिख-लिख मिटणो...
कळझळती आगी री लपट्यां
बधती ज्यावै मन रै गांव में
पड्या फफोळा दोड़्या जावै
पग बैरागी किसी छांव में
एक सबड़कै सुख रै खातर
आंख्यां मीच्यां तिल तिल जळणो...
बड़ी गजब है नदी दरद री
जिण रो कोई नहीं किनारो
जोवै च्यानणों जद जद आंख्यां
मुंह चिड़ावै खड़्यो अंधारो
चाल नहीं पावै ओ गजभर
उण पतझड़ पत्तै सो पी झड़णो...
दरद धूप सो पीळो पीळो
पसर्यां जा मन रै जा लुकगी
ऊगी भींतां हर आंगणियै
डील हुयो भाटै भरगो सो
चालण नैं बेसाखी बुनणो...