माणक मोती तट पर आवैं मा, हिवड़ै सागर झाल दे।

झल मल झलकैं बढै उजालो, ज्ञान दीवलो बालदे॥

म्होर ढलै ना ठबको खांवैं, छंदा की टकशाल दे।

सोन चिड़ी सी कविता सोवै, सरवरियाँ री पाल दे॥

देल्यां तांई भर् ‌यो खजानों, भाव पोटली खोल दे।

शबद शबद पर हिवड़ा रीझैं, सुघड़ सलूण बोल दे॥

झुक झुक मुजरो करू घणू, मा आंगण ड्योढी खोल दे,

बाणी फूटै स्वर गूंजै मा, गीतां को रमझोल दे॥

गोतै गोतै लाल मिलैं मा, इसड़ो जश को ताल दे।

जिण घड़ियां में कविता ठिठकै, उण घड़ियां टाल दे॥

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : महावीर प्रसाद शर्मा जोशी ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
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