या न्हँ बूझो थाँ बण काँई बीती
तन की गागर जस्यां प्राण सूं रीती
चैन कठीं छौ याद झकोळा खावै छी
हिवड़ा मायें जस्यां रेळ सी चालै छी
बाळ काळज्यै कनैं सेल सी साळै छी
बरखा की झड़ तन-मन झुळसा जावै छी
कागद कतणां लख-लख भेज्या म्हां नैं
ध्यान धर्यो न्हँ वीं प बी पण थांनै
सावन बीत्यो हचकी बी न्हँ आई
जाणें थानै मनड़े कांई चीती
तन की गागर जस्यां प्राण सूं रीती
आखा दन मुण्डेर्यां काग उड़ावै छी
अर आंख्यां में सगळी रात बितावै छी
जस्यां-तस्यां म्हूं मनड़ा ने समझावै छी
पण थां की यादां ने मना म्हँ पावै छी
सांची कहै हो थांनै सौगण म्हारी
जनम-जनम की प्रीत कस्या बिसरा द्यी
थां न्हँ आया बुला म्हनैं ई लेता
ऊमर बळी जस्यां बिन तेल पळीती
या न्हँ बूझो थे बिन कांई बीती
तन की गागर जस्यां प्राण सूं रीती