अश्यो आपणो गाँव भापड़ो।
अढनो भोळो गांव भापड़ौ॥
सूरज कै उगबा सूं फैली
गाऊं को करषो उठ जावै
ले हळ बैल खेत में पूगै
अपणा धंधा में जुट जावै
मैंगों खाद बीज ला बोवै
पण चोखो फैरं न खावै
अंकुर फूटै फसळां महकै
तो ऊं को हिवड़ो हुळसावै
चूमासा में घर चोवै अर
डील उघाड़ौ सहे तावड़ो॥
अश्यो आपणो गांव भापड़ो॥
तीज तिवार होळी’र दिवाळी
गेणै म्हलती रही पागड़ी
कश्या पाँच पकवान गांव में?
छै रस भोजन छाछ राबड़ी
एक ढक्यो अर एक उघाड़ो
क्यूँ कर पढ़बो लिखबो सीखै
तो भी राज कर्मचारयाँ ने
करवा का घर में धन दीखै
हीरा-मोती निपजाभाळो
माधो खावै जोर चापड़ो॥
अश्यो आपणो गाँक भापड़ों॥
फागुण फाग दिवाळी हीडां
चूमासै तेजाजी गावै।
चूल्हा में पाणी भरियो पण
सावण अलगोजा सरणावै॥
खेत नींदतां धान रोपताँ
हाथां में छाला पड़ जावै
पण सारो दुख भूल गोरडयां
नाचै कूदै उछब मनावै
राम को दुख-सुख सीता काटै
शेळो बासी खा’र गासडो।
अश्यो आपणो गांव भापडो॥
आजादी कै पाछै कतनी ही—
सरकारी बणी योजना
गावाँ में खुशहाली लाबा खातर
नेतां करी सोचना
गांव-गांव में सडक बीजल्या
अर शालबां खुल जावैगी
जीबा को इस्तर सुधरैगों
सब सुविधावां मल जावैगी
आज नहीं तो काल मिलैंगो
सुख सूं रोटी और कापडो
आशावादी गांव भापडो।
अत्तनो भोळो गांव भापडो॥