लहरावैगो, लहरावैगो, झंडौ यो करसाणां को।

घर महलां पै, मींदरा पै, कोट किलां पै, भंडारा पै॥

गांव गळी में, बाजारां पै, पुर द्वारां पै, दीवारां पै।

यो हळ मंडित ध्वज निसाण है, है करसां रा अरमानां को॥

लहरावैगो, लहरावैगो, झंडौ यो करसाणां को।

घणा सो चुक्या, जाग उठ्यां हां, आळस निंद्रा त्याग उठ्या हां।

घणी सह चुक्या, अब सहांगा, लेकर गांव स्वराज रहांगा।

देख लिया मंत्र्यां का लक्खण, स्वारथ धरम धनवानां को॥

लहरावैगो, लहरावैगो, झंडौ यो करसाणां को।

घड़ी घड़ी धोको दे दे कर, वोट किसानां का ले ले कर।

म्हां पर ही थां छुरी चलाई, सेवा बढ़िया थां की भाई।

अब चलेगो म्हां पर जादू, था सहरी सैतानां को॥

लहरावैगो, लहरावैगो, झंडौ यो करसाणां को।

गांधीजी की छाप लगाकर, चरखा को झंडो फहराकर।

खूब दुकान चलाई थांनै, लटू प्रजा सब खाई थांनै।

अब यो ब्लैक नहीं चलबा को, धोखा री दुकान्यां को॥

लहरावैगो, लहरावैगो, झंडौ यो करसाणां को।

अब कणी की साख भरांगा, म्हां की परबंध म्हंई करांगा।

पंच बोर्ड कौंसिल सब ही में, वोट किसानां नै म्हां दांगा।

अब मिलैगो ठेको थांनै, जंगळात को खान्यां को॥

लहरावैगो, लहरावैगो, झंडौ यो करसाणां को।

छूत-अछूत किसान बळाई, सब मिल अेकठ करलो भाई।

सब मिल कर पंचायत थापो, अेकठ कर सारो दुख काटो।

मत गांवां में जमबा दो अब, पंजो फिर श्रीमानां को॥

लहरावैगो, लहरावैगो, झंडौ यो करसाणां को।

गृह उद्योग चलवांगा म्हें, पक्को माल बणावांगा म्हें।

घर—घर अलख जगावांगा म्हें, सबनै ज्ञान सिखावांगा म्हें।

बली बणांगा क्यूं जगत में, सब कुछ है बलवानां को॥

लहरावैगो, लहरावैगो, झंडौ यो करसाणां को।

स्रोत
  • पोथी : भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में राजस्थानी कवियां रौ योगदान ,
  • सिरजक : विजयसिंह पथिक ,
  • संपादक : नृसिंह राजपुरोहित ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्रदेश कांग्रेस शताब्दी समिति, जयपुर, ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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