माटी में बीजां री आसा, करै रूखाळी प्राण की!

हळ धरती रो हियो जगादे, भीतर बैठी जानकी!!

बादळियो धररावै गावै,

रिमझिम-रिमझिम गीत रे!

मिणत-मजूरी हिरखै मुळकै,

आज धरां सूं प्रीत रे!!

उगता प्राण, पसीनो सींचै, जड़ लगी इंसान की!

हळ धरती रो हियो जगादे, भीतर बैठी जानकी!!

बीती बात भुँवाळी खावै,

सीधो मारग चाल रे!

जाणै-बूझै, अफ्ँड रचावै,

सिर में आग घाल रे!!

आज रगत रो तिरस्यो हँस-हँस बात करै ईमान की!

हळ धरती रो हियो जगादे, भीतर बैठी जानकी!!

आगै सुगणी जुग-बेळा है,

साथै जगती जोत रे!

उगतो सूरज नहीं पिछाणै,

बीं री अब तो मौत रे!!

जो श्रम री पूजा कर जाणै, पत राखै भगवान की!

हळ धरती रो हियो जगादे, भीतर बैठी जानकी!!

समो-बायरो बाजण लाग्यो,

मिनख पिछाणी बात रे!

डांगर सींग भिड़ावण लाग्या,

कर भोळां पर घात रे!!

जद गरीब री दुनियां जागी, लाळ पड़ी धनवान की!

हळ धरती रो हियो जगादे, भीतर बैठी जानकी!!

सायर मिलके जुगत बणावै,

धरती मोज मनावै रे!

मिली भुजावां, उठ्यो जमानो

नुई क्रांति नै ल्यावै रे!!

माणस नै अब निंवो झुकादे, के ताकत शैतान की?

हळ धरती रो हियो जगादे, भीतर बैठी जानकी!!

स्रोत
  • पोथी : सैनाणी री जागी जोत ,
  • सिरजक : मेघराज मुकुल ,
  • प्रकाशक : अनुपम प्रकाशन जयपुर
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